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GOD WORSHIP प्रभु /ईश्‍वर प्राणिधान

ईश्‍वर प्राणिधान   ईश्‍वर प्राणिधान  का अर्थ है , ईश्‍वर की आज्ञा के अनुसार तामसिकता (विषय-विकार/पाप) का त्याग करने का अभ्यास तथा केवल और केवल सात्विक कर्म (अष्टांग योग में उल्लेखित सतकर्म) करने का अभ्यास करते हुए अंतत पूर्णतः सात्विक बन कर उस अदृष्य शक्ति की अनुभूति करना। जितने भी विषय-विकार व पाप से रहित धर्मगुरू हुए हैं चाहे भगवान बुद्ध हो , महावीर स्वामी हो या अन्य कोई उन्होंने ने भी यही उपदेश दिया है कि तामसिकता का त्याग करके केवल सात्विक कर्म करने का अभ्यास करते हुए अंततः पूर्णतः सात्विक बनने पर ही वे दुखों से अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पा सकते हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही है दुखों से छुटकारा पाना , दोनों एक ही दिषा में बढ़ रहे हैं , अंतर केवल इतना है कि आस्तिक ईश्‍वर का पल-पल स्मरण करते हुए उस दिषा में बढ़ता है तथा सात्विक प्रवृत्ति का नास्तिक पल-पल मुक्ति को ध्यान में रखते हुए सत्य ज्ञान के अनुसार उस दिषा में बढ़ता है। मुक्ति प्राप्ति के लिये आस्तिक हो या नास्तिक दोनों को ही निष्काम कर्म करने पड़ते हैं , निष्काम कर्म का अर्थ है बिना किसी फल/परिणाम की कामना ...