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संतोष satisfaction संतुष्टि, gratification contentment, quietness, quietude

संतोष महर्षि गौतम ने कहा है :- असन्तोषं परं दुखं संतोषः परमं सुखं। सुखार्थी पुरुषस्तस्मात् संतुष्टः सततं भवेत॥ अर्थात-हे मनुष्य! इस संसार में दुःख का कारण असन्तोष है और सन्तोष ही सुख है। जिन्हें सुख की कामना हो वे सन्तुष्ट रहा करें। “ संतोष ही परम सुख है। असन्तोषी तृष्णा/कामना/वासना आदि की पूर्ति में ही लगा रहता है तथा ईर्ष्या , राग-द्वेष से ग्रसित रहने के कारण दुखी रहता है। उसमें स्वार्थ भाव की अधिकता रहती है , परहित से वह कोसों दूर रहता है और यदि परहित करता भी है तो बिना सोच-विचार के केवल और केवल अपने निकटतम संबंधियों का जैसे कि कहावत है अंधा बाटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय। संत तुलसी दास ने इसे कहकर व्यक्त किया है। बिना सन्तोष आये कामनाओं का अन्त नहीं होता। कामनाओं से सुख संभव नहीं है। बिनु सन्तोष न काम नसाहीं। काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं॥ चाणक्य ने लिखा है मनुष्य का विनाश क्रोध के कारण और तृष्णा वैतरणी नदी के समान है जिसका कभी अन्त नहीं होता। विद्या कामधेनु के समान है तथा सन्तोष नन्दन वन के समान हैं। अर्थात् मनुष्य का विनाष क्रोध के कारण होता है , क्रोध भी दो तरह क...