भावार्थ - या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'

 सर्वे भवंतु सुखिनः


या देवी सर्वभूतेषु 

शक्ति-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 


जिसका गुण देने का हो उसे ही देव अथवा देवी कहते हैं 

इस दृश्‍यमान संसार में विद्यमान उस अदृश्‍य शक्ति की अद्भूत रचना के कारण ही हमें  जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्‍वी के माध्‍यम से  जीवन प्राप्‍त होता है

यदि वायु नहीं तो जीवन नहीं

यदि अग्नि/सूर्य नहीं तो जीवन नहीं 

यदि आकाश खुला स्‍थान नहीं तो जीवन नहीं 

यदि जल नहीं तो जीवन नहीं 

यदि आश्रय स्‍थल नहीं तो जीवन नहीं - यानि कि चाहे जलचर हो अथवा नभचर हो अथवा थलचर हो सबको विश्राम करने के लिये आश्रय स्‍थल की आवश्‍यकता पडती ही है। नभचर आकाश में अथवा वायु में विचरण करने के उपरांत एक समय ऐसा आता है कि उन्‍हें पृथ्‍वी अथवा पृथ्‍वी पर स्थित पेड पौधे आदि का आश्रय विश्राम हेतु लेना ही पडता है।


तो वह अदृश्‍य शक्ति चाहे हम उसे किसी भी नाम से संबोधित करें वह जग को दान देने वाली देवी समस्त भूतों में यानि के पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश में ''शक्ति'' के रूप में विद्यमान है

ऐसी दात्री शक्ति जिसके कारण समस्‍त भूत व सकल पदार्थ  गतिमान है  

उस परम शक्ति को  बारंबार नमस्कार है. '

 

या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 


जैसे कि यदि मां नहीं तो सृष्टि सृजन भी नहीं

जैसे स्‍त्री के कारण यह संसार का चक्र चलता रहता है 

तो उसी तरह उस अदृश्‍य शक्ति की अद्भूत रचना के कारण सृजन और विनाश की प्रक्रिया सतत चलती ही रहती है। 

इसलिये जगत के सृजन का कारण होने के कारण उस अदृश्‍य शक्ति को मातृ शक्ति का रूप माना गया है, इसीलिये उसे इस जगत की मां के नाम से भी सम्‍बोधित किया गया है। 

 

अर्थात उस कण-कण में विद्यमान देवी के कारण ही सृष्टि की उत्पत्ति होती है 

उस के नियम के कारण ही सृष्टि में सृजन का कार्य होता है 

उसकी अद्भूत रचना के कारण ही हमें  फल, फूल, अन्न, जल आदि की प्राप्ति होती है 

उस कण कण में विद्यमान सृजन की देवी को बारंबार नमस्कार है. 


'या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

यानी कि कण-कण में विद्यमान जिस चेतन शक्ति के कारण  

सब कुछ गतिमान है


समस्त प्राणियों के प्राण गतिमान है, 

उस प्राणाधार चेतन शक्ति को बारंबार नमस्कार है.

 

'या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः' 

 

यानी कण कण में विद्यमान देवी जो कि तेज के रूप में सूर्य की किरणों में विद्यमान है, 

जो मनुष्य के ललाट पर तेज के रूप में विद्यमान हैं

दिव्यज्योति के रूप में आंखों में विद्यमान है 

ऊर्जा रूप में नाभि स्थल के पास अग्नि तत्व के रूप में विद्यमान हैं, 

उसे बारंबार नमस्कार है. 

 

 'या देवी सर्वभूतेषू जाति रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

यानि कि कण-कण में विद्यमान वह देवी 

विभिन्न जातियों / योनियों के समस्त सजीव प्राणियों / प्राण धारियों के प्राणाें का आधार है  

उस समस्‍त प्राणियों की प्राणाधार अदृश्‍य शक्ति देवी को  बारंबार नमस्कार है.'

 

'या देवी सर्वभूतेषु दया-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

जिसके मन में दया भाव है 

वह दया भाव कण-कण में विद्यमान देवी की ही प्रति छाया है 

जहां जहां दया भाव प्रकट होता है 

वहां वहां वह देवी दया की प्रतिमूर्ति के रूप में विद्यमान है 

उस दयावान देवी को बारंबार नमस्कार है '


 

या देवी सर्वभूतेषु शांति-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

जिसके मन में शांति का भाव जागृत हो गया है  

जिसकी  वाणी से 

जिसके कर्म से 

अन्यों  को भी शांति मिलती है 

वह शांति का भाव उस कण कण में विद्यमान देवी का ही प्रतीक है 

उस शांति की देवी को बारंबार नमस्कार है.

 


'या देवी सर्वभूतेषू क्षान्ति रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'

 

क्षान्ति का अर्थ होता है 

सहनशीलता, क्षमा 

यानि की जो 

सहनशील है 

क्षमावान है 

तो जिसमें सहनशीलता और क्षमा भाव है ऐसा मनुष्‍य इस धरा पर उस देवी की ही प्रतिकृति है  और ऐसा मनुष्‍य ही गुरू पद धारण करने योग्‍य है

आज इस संसार में अधिकतर सभी के जीवन में जब अत्‍यधिक दुख का क्षण आता है, तब उस अदृश्‍य शक्ति को ही उस दुख का कारण मानकर उसको ही दोषी मान लिया जाता है और अधिकतर मनुष्‍य यही कहते हैं कि यह आपने सहीं किया, जबकि यह दुख हमारे स्‍वयं के कर्मों का ही परिणाम होता है। लेकिन वह अदृश्‍य शक्ति फिर भी हमें क्षमा कर देती है और हमारे कर्मों के अनुसार ही हमें सुख दुख प्रदान करती है। 

उस सहनशील वे क्षमावान  देवी को  बारंबार नमस्कार है.  

 

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धि-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

कण कण में विद्यमान वही देवी सभी प्राणियों में बुद्धि के रूप में विद्यमान है 

जिसके मन में 

दया का भाव है

क्षमा  का भाव है,

शांति का भाव है  

सहनशीलता का गुण विद्यमान है 

ऐसी सुबुद्धि उस देवी का प्रतीक है 

ऐसी सुबुद्धि वाले मनुष्‍य उस देवी की ही प्रतिकृति है और ऐसे मन वालों को सत्‍य गुरू माना जा सकता है। 

ऐसी सुबुद्धि वाली देवी को बारंबार नमस्कार है। 

 

'या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

जब मन 

दया, क्षमा, शांति, सहनशीलता करूणा से परिपूर्ण हो जाता है, तब बुद्धि प्रज्ञा में परिवर्तित हो जाती है

यानि कि बुद्धि की पहुंच परिवर्तनशील तत्‍वों तक ही है, दृश्‍यमान पदार्थों तक ही है, जबकि प्रज्ञा की पहुंच अदृश्‍य चेतन तत्‍व तक है, वह चेतन तत्‍व, वह पावर, वह करंट जिसके बिना कुछ भी गतिमान नहीं रह सकता। 

तो क्षमा, शांति, सहनशीलता के भाव के कारण जिसकी बुद्धि प्रज्ञा में परिवर्तित हो गई है, ऐसे मन वाले ही इस धरा पर उस अदृश्‍य शक्ति की प्रतिकृति है और सत्‍यगुरू कहलाने योग्‍य हैं 


क्षमा

शांति

करूणा

दयावा

सहनशीलता 

यह सभी गुण उस अदृश्‍य शक्ति देवी के हैं, जिस मनुष्‍य के मन में यह गुण समाहित हो जाते हैं उसके अंतर में उस अदृश्‍य शक्ति का ज्ञान प्रकट होता है 

यानि कि ज्ञान उस कण कण में विद्यमान देवी का ही प्रसाद है और वह ज्ञान उसकी प्रेरणा से ही मनुष्‍यों की वाणी और लेखनी के द्वारा जन जन तक पहुंचता है  

सत्‍य ज्ञान उस देवी का ही प्रतीक है

उस विद्यावान ज्ञान की देवी को  बारंबार नमस्कार है. 

 

'या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धा-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

श्रद्धा का एक अर्थ है सत्य को धारण करना 

जिन प्राणियों में सात्विकता की झलक दिखाई देती है 

वह सात्विकता उस कण-कण में विद्यमान देवी की ही प्रतीक है  

उस श्रद्धा, आदर, सम्मान के योग्य देवी को बारंबार नमस्कार है। 

 

'या देवी सर्वभूतेषु भक्ति-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

कण-कण में विद्यमान वह देवी 

उसकी सृजन शक्ति 

उसकी दया 

उसकी क्षमा 

उसकी शांति 

उसकी विद्या/ज्ञान 

उसकी बुद्धि के कारण 

वह शक्ति 

भक्ति के योग्य है , 

उस शक्ति को बारंबार नमस्कार है.   

 

'या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

कण कण में विद्यमान उस देवी के कारण ही धन-सम्‍पदा इस संसार में विद्यमान है। 

उस धन-सम्‍पत्ति के स्रोत रूपी  देवी को  बारंबार नमस्कार है.

 

'या देवी सर्वभूतेषु तृष्णा-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ 

 

अर्थात कण कण में विद्यमान वह देवी ही केवल कामना के योग्‍य है, वह देवी ही केवल तृष्‍णा के योग्‍य है 

उसके अतिरिक्‍त सांसारिक पदार्थों की तृष्णा बंधन का कारण है। 

उस तृष्‍णा योग्‍य देवी को बारंबार नमस्कार है. '

 

या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 

 

अर्थात मनुष्‍य जब तक जीवित रहता है, जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक उसकी क्षुधा/भूख नहीं मिटती 

लेकिन जो उस देवी की अनुभूति कर लेता है उसकी क्षुधा सदा-सदा के लिये शांत हो जाती है। 

उस तृप्ति दायिनी देवी को बारंबार नमस्कार है.

 

'या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'

जिसके मन में संतोष का भाव है, 

उनका यह संतोष का भाव भी उस कण कण में विद्यमान देवी का प्रतीक है।


संतोष की उस देवी को बारंबार नमस्कार है. '

🌹

या देवी सर्वभूतेषु निद्रा-रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' 


जैसे कि निद्रा के उपरांत एक नयी उर्जा की प्राप्ति होती है। 

तो उस देवी की रचना के कारण निद्रा के द्वारा हमारा मन भी शांत होता है और हमें एक नयी उर्जा की भी प्राप्ति होती है।

उस कण कण में विद्यमान शक्ति को उसकी अदभूत रचना के लिये बारंबार नमस्कार है.


'सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥' 


जो सबका मंगल करने वाली है, 

मंगला है, 

अपने भक्‍तों/साधकों का कल्‍याण करने वाली है।

उसकी शरण ही ग्रहणीय है, 

वही तीनों लोकों की स्‍वामिनी है,

वही कण कण में विद्यमान होने के कारण 

हर एक नर-नारी में भी विद्यमान है, 

वह देवी पवित्र है,

ध्‍वल है, 

उज्‍जवल है, 

वही सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली है। 

उस कण कण में विद्यमान देवी को बांरबार नमस्कार है।

Comments

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