गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद GURU MERI PUJA GURU GOVIND

गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद,
 गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, 

इस संसार में अधिकतर सभी लोग किसी ना किसी धर्म से जुड़े होते हैं l आप किसी भी धर्म से जुड़े हो लेकिन अपने आदर्श पुरुष की वाणी को नहीं माना तो सब व्यर्थ है l कृपया आपको जब भी समय मिले, अवश्य पढ़ेंl


जित बिठरावे, तित ही बैठू, जो पहरावे सोई सोई पहरूं, मेरी उनकी प्रीत पुरनी बैचें तो बिक जाउ
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु मेरा देव अलख अभेवो, सरब पूज्य, चरण गुरु सेवो
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु बिन अवर नहीं मैं थाउं, अन गिन जपो, गुर गुर नाओ
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु मेरा ग्यान,गुरु रिदे धयान, गुरु गोपाल पुरख भगवान्
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु की सरन रहूँ कर जोर, गुरु बिना मैं नाही होर
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु बोहित तारे भव पार, गुरु सेवा ते यम छुटकार
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, अन्धकार में गुरु मन्त्र उजारा, गुरु कै संग सगल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत, गुरु पूरा पाईये वडभागी, गुरु की सेवा दुःख ना लागी
गुरु का सबद ना मेटे कोई, गुरु नानक नानक हर सोए, गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद, गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत

भावार्थ

🌺जित बिठरावे, तित ही बैठू,
जो पहरावे सोई सोई पहरूं,
मेरी उनकी प्रीतपुरनी बैचें तो बिक जाउ

इस संसार में दो तरह के गुरू.
और दो  तरह के शिष्‍य  होते हैं-
एक होता है वह जिसे इस संसार के किसी भी पदार्थ/शक्‍ल की कामना नहीं होती है, केवल जीवित रह सके l इसीलिये इस संसार के पदार्थों का उपभोग करता है, वह भी संयम पूर्वक और शिष्‍यों को भी ऐसा ही करने का उपदेश देता है। वही सत्‍य गुरू कहलाने योग्‍य होता है।
दूसरा गुरू होता वह शिष्‍यों को तो उपदेश देता है कि विष्‍य
विकार, मोह, माया से दूर रहो और स्‍वयं इस संसार में विद्यमान  विष्‍य
विकार, मोह, माया से संलिप्‍त पदार्थ/शक्‍लों में डूबा रहता है। वह गुरू तो हो सकता है, लेकिन सत्‍य  गुरू कहलाने योग्‍य नहीं होता है।
एक शिष्‍य तो बिना सोच विचार के गुरू के आगे नतमस्‍तक होता है,और गुरू वाणी की उपेक्षा/अवज्ञा करते हुए अपने मन के अनुसार कर्म करता है।
दूसरा शिष्‍य सोच विचार के गुरू के आगे तो नतमस्‍तक होता ही है साथ ही उसकी वाणी यानि के गुरूवाणी के आगे अपना मन भी नतमस्‍तक कर देता है।
जो गुरू वाणी के आगे नतमस्‍तक होकर जीवन बिताता है, उसी का कल्‍याण होता है।
इस संसार में अधिकतर शिष्‍य अन्यों को तो अपने गुरू की
महिमा बताकर अपने साथ जोड़ लेते हैं, लेकिन उन्हें गुरू द्वारा
 बताये गये सत्यज्ञान की पालना करने के लिये प्रेरित ही नहीं
करते हैं और जो नया शिष्‍य जुडता है वह भी बिना
गुरू की वाणी को ध्यान में रखते हुए अपने मन के अनुसार कर्म
करता रहता है, चाहे वह सही हो या गलत। आज के समय आवश्यकता
यही है कि जिस भी धर्म से जुडे हों जिसको भी उससे जोडें उसका मत परिवर्तित करने के साथ ही उसका मन भी गुरू वाणी के अनुसार
परिवर्तित करने का पूर्ण प्रयास किया जाना चाहिये।
यह भजन गुरू वंदना का है और सिख धर्म से संबंधित है, इसे
बहुत से धर्म/मत के अधिकतर शि‍ष्‍य गुरू वंदना के रूप में गाते रहते हैं, गुनगुनाते रहते हैं, लेकिन
कुछ लोगों को पता नहीं है किसिख धर्म में ज्ञान को ही यानि के
ग्रंथ को ही गुरू अथवा सत्‍य गुरू के रूप में मान्यता दी गई है और यह मान्यता देने वाले थे
परम आदरणीय श्री गुरू गोविन्‍द सिंह जी। उनका यह निर्णय सर्वश्रेष्‍ठ निर्णय है। क्‍योंकि ग्रंथ/ज्ञान से बढ़कर कोई दानी नहीं जो बदले में शिष्‍य से ना तो तनमांगता है, ना धन मांगता है और ना ही मन मांगता है, केवल
शिष्‍य को राह/पथ/मार्ग दिखाता है इस‍लिये वह रहबर है, पथ प्रदर्शक है, मार्गदर्शक है। निर्लोभी है, निर्माहि है, निर्वेर है, मोह-माया से रहित है, अकाल मूरत है यानि यह जो ज्ञान है किसी काल में नहीं मरता सदा विद्यमान रहता है।

एक मनुष्य स्वार्थी, विकारी,
लोभी, कामी, मोही, माया से  ग्रसित हो सकता है और इसी कारणआज कुछ धर्म प्रचारक  जो जेल में बंद हैं, उन्होंने उपदेश तो ग्रंथ से ही दिया लेकिन स्वयं ने
स्वयं के उपदेश से विपरीत कर्म किये। अतः परम आदरणीय श्री गुरू गोबिंद सिंह जी का यह निर्णय कि सब सिखों को हुकम है गुरू
मान्यो ग्रंथ सराहनीय/प्रशंसनीय है, स्वर्ण अक्षरों में
लिखने योग्य है।
सार यही है कि हमें गुरू से यदि कुछ मिलता है तो वह है ज्ञान, ज्ञान से बढ़कर कुछ भी नहीं।अफसोस तो इस बात का है कि आज के अधिकतर शिष्‍य ज्ञान के आगे यानि के गुरूवाणी के आगे अपने मन को नतमस्तक  नहीं करते केवल अपने तन/शरीर को नतमस्तक करते हैं।    जो गुरूवाणी का पालन करता है या पालना के लिये सच्चे मन से प्रयासरत है वही सच्चा शिष्‍य कहलाने योग्य है।

जित बिठरावे तित ही बैठू
इस भजन की शुरूआत होती है कि है मेरे ज्ञान प्रदाता/मार्गदर्शक/पथ प्रर्दशक तू मुझे जहां बैठायेगा वहीं बैठ जाउंगा, यानि कि तेरे सभी आदेशों का पालन करूंगा, तेरा आज्ञाकारी बन कररहूंगा,जो पहरावे सोई सोई
पहरूं
जो पहनायेगा वही पहनुंगा,  यानि के तेरे वचन मुझे जिस  दायरे में, जिस रेखा के भीतर रहने को कहेंगे, उसी रेख के भीतर रहूंगा, उसी दायरे के भीतर रहूंगा।
🌺मेरी उनकी प्रीत पुरनी
बैचें तो बिक जाउं
मेरी और गुरू वाणी की प्रीत
जन्मा जन्मांतरों से है, लेकिन
 हर जन्म में गुरू वाणी की  पूर्णतः पालना नहीं करने के कारण मुझे बार-बार जीवन-मृत्यु रूपी चक्र में फंसना पड़ रहा है। अब इस जन्म में चाहे कुछ भी हो जाये मैं गुरू वाणी की पालना के लिये तन, मन, धन से समर्पित रहूंगा।

🌺गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म गुरु भगवंत,
गुरु मेरा देव अलख अभेवो
सरब पूज्य चरण गुरु सेवो

गुरू की वाणी ही मेरे लिये
पूजनीय है, गुरू की वाणी है मेरे लिये भगवान तुल्य है, गुरू की वाणी मेरे लिये पारब्रह्म है, गुरू की वाणी ही मेरे लिये सर्वस्व है। गुरू वाणी ही तो वह अमोघ
शस्त्र है,जिसकी पालना करने
पर जन्म-जन्मांतरों की कामना-वासना छिन्न-भिन्न हो जायेगी और परम उद्देश्‍य अंतिम मंजिल तक
पहुंचायेगी।  इसलिये गुरू की वाणी ही मेरे लिये पूजनीय है, वही देवता यानि के ज्ञान देने वाली है। गुरू वाणी रूपी चरण ही
 पूजनीय है। गुरू वाणी के अतिरिक्त मेरा
कोई सहारा नहीं है, यही वह अनमोल वाणी है जो मेरे सभी दुखों का अंत कर देगी। अतः मैं हर पल हर क्षण गुरू
वाणी को याद रखूं और उसके विपरीत कोई कर्म नहीं करूं।

🌺गुरु मेरा ग्यान गुरु रिदे धयान
गुरु गोपाल पुरख भगवान्

गुरू वाणी है मेरे लिये ज्ञान का सागर है, गुरू वाणी का ही मुझे सदैव ध्यान रखना है,
जैसे एक गौ का पालनकर्ता गौ का ध्यान
रखता है, उसी तरह मुझे सदैव
गुरू वाणी का ध्यान रखना है, और यदि कोई मेरा भाई-बहिन,
अपना या पराया गुरू वाणी के विपरीत चल रहा हो तो उसे गुरू वाणी/सत्य ज्ञान की याद दिलानी है कि गुरू वाणी क्या कहती है और
हम क्या करने जा रहे हैं। गुरूवाणी का नित्य अध्ययन
करूं यानि गुरू वाणी को
प्रतिदिन/प्रतिपल/प्रतिक्षण याद रखूं। जैसे गोपाल, गौ की पालना करता है, उसी तरह मैं भी गुरू वाणी की पालना करने के लिये तत्पर रहूं ।ईश्‍वर स्वयं प्रकट होकर ज्ञान प्रदान
नहीं करता वह किसी को
माध्यम बनाता है। तो उन्होंने जिसे माध्यम बनाया, उन्होंने जो ज्ञान उन्हें प्राप्त हुआ उसे ग्रंथ में
प्रकाशित करवा दिया। अतः गुरूवाणी ही ईश्‍वर की
वाणी है, अतः में गुरू/ईश्‍वर की वाणी का सदैव ध्यान रखूं और उसी के अनुसार कर्म करता रहूं।

🌺गुरु की सरन रहूँ कर जोर,
गुरु बिना मैं नाही होर

मैं गुरू वाणी की शरण में रहूं
यानि के गुरू वाणी का साथ
कभी नहीं छोड़ूं, गुरू वाणी के
प्रति सच्ची श्रद्धा रखूं उसके प्रति मेरे तन और मन दोनों को
 नतमस्तक कर दूं। गुरू वाणी के अतिरिक्त मेरा इस संसार में कोई सच्चा
हितैषी नहीं, कोई सच्चा सहारा नहीं।

🌺गुरु बोहित तारे भव पार,
गुरु सेवा ते यम छुटकार

गुरू वाणी ने बहुतों को इस
 संसार रूपी भव सागर से पार किया है, यानि के सभी दुखों सेछुटाकारा दिलाकर अनन्त सुख प्रदान किया है, और गुरू वाणी की पालना ही से वह स्थिति
 बनेगी कि यम रूपी चोर मेरे शरीर रूपी कक्ष की कुंदी खोल कर अंदर घुस कर मुझे नहीं ले जा सकेगा,क्योंकि गुरू वाणी में इतनी
शक्ति है कि उसकी पालना करने पर मैं स्वयं अपने शरीर रूपी कक्ष की कुंदी खोल कर स्वयं इस
शरीर का त्याग करंगा, लेकिन
 यह स्थिति तो गुरू वाणी की
पूर्णतःपालना करने पर ही आ
सकती है अन्यथा कमी रहने पर तो यम से छुटकारा यानि के
दुखों से छुटकारा असम्भव है।

🌺अन्धकार में गुरु मन्त्र
उजाराण् गुरु कै संग सगल निस्तारा

ज्ञान ही यानि कि गुरू वाणी ही वह सच्चा गुरू मंत्र है जो अंधेरे/तम से प्रकाश/ज्योति की ओर लेजाता है। गुरू वाणी ही वह मंत्र है, जिसका संग करने पर यानि के जिसकी पालना करने पर सभी समस्याओं का निदान हो जाता है। अज्ञान ही तो वह कारण है,
जिस के  कारण समस्यायें पैदा होती है। आज हर प्राणी की सबसे बड़ी आवश्‍यकता है तो वह है रोटी। जब किसी मनुष्य की ऐसी स्थिति हो जाती है कि उसे रोटी तक हासिल नहीं होती तो वह  सुखी रोटी भी बिना सब्जी के खाने के लिये तत्पर हो जाता है, जैसा कि कहा है कि दुनिया में ऐसे  लोग हैं, जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता सिवाय रोटी के रूप  के, ऐसे ही लोगों की  मदद करनी चाहिये। जब धन-सम्पदा आ जाती है तो फिर नयी-नयी कामनायें पैदा
होने लगती है। तब गुरू की वाणी ही है जो
 समझाती है कि सांई इतना
दीजिये जामे कुटुम्ब समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधू ना भूखा जाये। गुरू की वाणी जीवन जीने की कला सिखाती है, सत्य बोलने के लिये प्रेरित करती है, विकारों से बचने के  लिए  प्रेरित करती है, सत्कर्म करने को प्रेरित करती है, दुखियों/बेसहारा/जरूरतमंदों की मदद करने को प्रेरित करती है। अतः जैसे कि कोई भी व्यक्ति जब तक स्वयं भोजन ग्रहण नहीं करेगा
तब तक उसकी क्षुधा शांत नहीं होगी, और जब तक स्वयं अपनीशारीरिक गंदगी भी स्वयं को
विसर्जित करनी होगी और कोई नहीं कर सकता। उसी तरह गुरू भी हमने गुरू वाणी के रूप में
धारण किया है तो उसकी वाणी की पालना भी हमें स्वयं ही
करनी होगी। जैसे हमारा तन साबुन से हमें ही स्वच्छ रखना होगा तो फिर यह मन भी हमें स्वयं ही गुरू वाणी रूपी साबून से स्वच्छ रखना होगा।


गुरु पूरा पाईये वडभागी, गुरु की सेवा दुःख ना लागी
पूर्ण और सत्‍य ज्ञान बडे़ सौभाग्य से प्राप्त होता है, जब तुम ध्यान का
 अभ्यास करोगे तो तुम्हें
गुरूवाणी के अनुसार चलने में
सहायता प्राप्त होगी, तुम्हारा
अंतकरण शुद्ध होने लगेगा।  और गुरू की वाणी के अनुसार समस्त कर्म  करोगे तो औरों की सेवा करके उनके तो दुख दूर करोगे ही  अपितु गुरू वाणी रूपी पारसमणी से
स्वयं का भी कल्याण करोगे एवं स्वयं भी सभी दुखों से छुटकारा पालोगे।
🌺गुरु का सबद ना मेटे कोई,
गुरु नानक नानक हर सोए

गुरू का आदेश है कि तुम गुरू वाणी की पालना करो तो यह
परम सत्य है कि गुरू वाणी की पूर्णरूप से पालना करने पर तुम स्वयं भी एक चलते फिरते ग्रंथ बन जाओगे, जीवन मुक्त हो जाओगे।तुम्हारा जीवन दर्शन ही दर्शनीय हो जायेगा, तुम्हारा जीवन दर्शन भी लोगों को एक सच्चा और महान  बनने के लिये प्रेरित  करेगा, जैसे तुमने स्वयं को जीते जी मारा है  (इंद्रियों को वश में करके संयम पूर्वक जीवन बिताना) इसी तरह अन्य भी जीते जी मरने के लिये प्रेरित होंगे और  सभी दुखों से छुट जायेंगे।
 सारांश
यदि गुरू वाणी ( ज्ञान)  के
अनुसार कर्म नहीं करते हैं तो,  गुरू के पास जाने का उद्देश्‍य कभी पूरा नहीं हो सकता है। यदि यह कहें कि गुरू के पास जाने से दुख समाप्त हो जाते हैं तो यह भी गलत है क्योंकि इस कलियुग में ऐसा कोई गुरू नहीं जिसकी काया में कोई रोग नहीं लगा हो, श्री राकृष्ण परमहंस गले के केंसर से पीड़ित थे, श्री विवेकानंद को भी कुछ रोग लगे हुए थे, श्री दयानन्द जीभी जहर के कारण रोग ग्रसित हुए थे, हंसा मत के
संस्थापक भी दमा रोग से
पीडित रहे थे। श्रीचरणसिंह जी को हृदयघात हुआ था, श्री सावनसिंह जी के
पैर की हड्डी टूटी थी। निरंकारी वालेगुरूजी ने कार  दुर्घटना के कारण अपना शरीर छोड़ा था।  किसी गुरू की पत्नी पहले शरीर छोड़ देती है या फिर कोई गुरू अपनी पत्नी से पहले शरीर छोड़ देता है। तात्‍पर्य यह है कि इस कलियुग में चाहे कितना भी बड़े से बड़ा गुरू हुआ हो उसे दुख तो झेलना ही पड़ा है, जब सत्‍कर्म की राह पर चलने वाले भी अपने प्रारब्‍ध से नहीं बच सकते तो फिर क्‍या कोई शिष्‍य गुरू कृपा से दुख से बच सकता है? यदि किसी भी शिष्‍य के समक्ष कभी भी दुख नहीं आये तो मान सकते हैं कि गुरू कृपा से समस्‍त दुखों का अंत हो जाता है। समस्‍त दुखों के अंत का यदि कोई आधार है तो वह केवल और केवल गुरू वाणी की पालना ही है अन्‍य कुछ नहीं। यह परम सत्य है कि गुरू या अन्य कोई भी व्यक्ति हमें कुछ समय के लिये सही  कर दे, लेकिन हमें कुछ समय बाद फिर दुख हमारे समक्ष खड़ा होगा। हमारे द्वारा किये गये कर्मों के  परिणाम से हमें कोई नहीं बचा सकता है।  ज्ञान कहता है कि जो बोयेगा  वही पायेगा तेरा किया आगे  आयेगा, सुख दुख है क्या फल कर्मों का जैसी करनी वैसी भरनी । गुरू वाणी एक दायरा बनाती है, लक्ष्‍मण रेखा की तरह एक ज्ञान की रेखा खेंचती है और संदेश देती है कि इस लीक/लकीर से पार नहीं जाना।  जो सिखाती है कि इस दुनिया में  रहते हुए इस दुनिया से प्रीत  नहीं करना। प्रीत करना तो केवल और केवल गुरू वाणी से करना।  गुरू वाणी के अनुसार सदैव  सत्कर्म करना। विकारों से बचना।मर्यादा को बनाये रखना। पर नारी का विचार भी मन में  मत आने देना। हरपल/हरक्षण गुरू वाणीको याद  रखना । संतोषी रहना, अपने से बड़े  और छोटों की यथा योग्य पालना करना। पराये धनका विचार भी मन
में ना आने देना। सक्षम होतो जरूरत मंदों की
सहायता करना। मन में किसी भी तरह की गंदगी नहीं आने देना। प्रमाद में मत उलझना। नित्य ध्यान करना। सदग्रंथों का अध्ययन करना। गुरू वाणी का पालन करने वालों की संगति करना। दुष्‍टों की संगति भी करनी पड़े तो अपनी साधु‍वृत्ति को नहीं त्‍यागना।  किसी भी प्राणी को दुख नहीं पहुंचाना। सदा सत्य बोलना।जिस अदृश्‍य शक्ति ने हमें यह जीवन/श्‍वांस प्रदान की है, उसको याद रखते हुए गुरू वाणी के अनुसार कामना/वासनाओं के त्याग का अभ्यास करना । केवल और केवल सत्कर्म ही
करना, सत्कर्म ही करना।

सबका भला हो

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