बसंत पंचमी पर विशेष
सर्वे भवंतु सुखिनः
⚘
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
⚘
जो गुरु उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें
⚘
लेख का उद्देश्य किसी का दिल दुखाना नहीं है अपितु सत्कर्मों के लिये प्रेरित करना है।
⚘
अधिकतर शिष्य अपने मत की वाहवाही तो करते हैं लेकिन
⚘
एश्वर्य का आधार ⚘
मुक्ति का आधार सत्कर्मों को जीवन में स्थान ही नहीं दे पाते हैं
⚘
जैसे कि बसंत के बाद बहार का मौसम आता है,
⚘
वैसे ही सभी के जीवन में बहार आ जाये,
⚘
समस्त जगत के प्राणियों के समस्त दुखों का अंत हो जाये और
सदाबहार की तरह सभी का जीवन सुखमय हो जाये।
⚘
सनातन धर्म के अनुसार शारदा देवी को सरस्वती देवी के नाम से जाना जाता है, जो कि
सुरों की देवी है,
ज्ञान की देवी है,
शारदा शब्द के अन्य पर्यायवाची एवं अन्य अर्थ हैं -
⚘
हंसमुख,
⚘
सक्षम,
⚘
स्वैच्छिक,
⚘
रचनात्मक,
⚘
उदार
⚘
हंसमुख -
⚘
यानि कि जिस पर दुख-रंज का कोई असर नहीं पड़ता ⚘
जब भी कोई मुस्कुराता है
उस मुस्कुराहट में उसकी ही झलक दिखाई पड़ती है
⚘
सक्षम –
यानि के ऐसी शक्ति जो पूर्णत: सक्षम है
किसी के उपर आश्रित नहीं है,
अपितू सबका आधार है।
सर्वाधार है जिसके आधार पर ही समस्त ब्रह्मांड टिका हुआ है
⚘
स्वैच्छिक –
यानि के वह शक्ति किसी की भी इच्छा पर निर्भर नहीं है,
⚘
स्वतंत्र है।
⚘
बंधन रहित है
⚘
बंधन में नहीं आती हैं
⚘
कोई उसे बांध नहीं सकता है
⚘
भय रहित है
निर्भय हैं
किसी के भय से कार्य नहीं करती है
⚘
सर्वशक्तिमान है क्योंकि एक शक्तिहीन कभी स्वैच्छिक नहीं हो सकता वह किसी के दबाव में गलत निर्णय भी कर सकता है लेकिन वह शक्ति न्यायकारी है
इसीलिये वह स्वैच्छिक है।
⚘
रचनात्मक –
जो रचना
(निर्माण, सृजन) से संबंधित है।
⚘
यानि के संसार की रचना से संबंधित है।
⚘
उदार –
जो दयावान है,
पापियों को भी सुधरने का मौका देती है,
⚘
पापियों के लिये भी करूणा का भाव रखती है
⚘
यह सभी गुण इस प्रकृति में विद्यमान उसी अद़ृश्य शक्ति के हैं,
⚘
जैसे कि बिना किसी पावर/शक्ति के कुछ भी गतिमान नहीं हो सकता है,
चाहे मोबाईल हो,
टीवी हो या अन्य कुछ भी
⚘
वही सुपर पावर है
⚘
वही अद़़श्य शक्ति है,
⚘
वही आन्नद का स्रोत है,
⚘
वही ज्ञान का स्रोत है,
⚘
वही ज्योति / प्रकाश का स्रोत है,
⚘
वही शब्द का स्रोत है।
⚘
वही फल/फूल/अन्न आदि का स्रोत है।
⚘
जब भी कोई उस अदृश्य शक्ति से जुडता है तो
इस संसार से उसका मन पृथक हो जाता है।
⚘
तो जिसका भी मन ध्यान के माध्यम से इस संसार में विद्यमान नश्वर पदार्थों /शक्लों से पृथक हो जाता है
तो स्वत: ही उस अदृश्य शक्ति से जुड जाता है
⚘
वह अपूर्ण से पूर्ण बन जाता है
⚘
पुरूष से महापुरुष बन जाता है
⚘
साधारण से असाधारण बन जाता है और
ऐसे ही महापुरूषों ने इस संसार के लोगों को
भूतकाल में भी अज्ञानता से तारने का कार्य किया था
वर्तमान में भी कर रहे हैं और
भविष्य में भी करते रहेंगे
⚘
ध्यान की दो अवस्थायें होती हैं,
⚘
1- शांतचित्त होकर मन को व्यर्थ के विचारों से परे हटाते हुए किसी भी एक केन्द्र बिन्दू पर मन को स्थिर करना।
⚘
2- जाग्रत अवस्था में इस बात का ध्यान रखना कि जो दूसरों की सत्य सलाह है चाहे वह आदर्श पुरूष की हो
गुरू/ग्रंथ की हो
या कोई व्यक्ति विशेष की हो
या वह स्वयं की हो
तो उस सत्य सलाह का
किसी भी क्षण
किसी भी पल में उल्लंघन नहीं हो
⚘
किसी भी परिस्थिति में दुष्कर्म नहीं हो।
⚘
जब कोई इस तरह से ध्यान करेगा तो उसे भी
सत्य का
ज्ञान का
आनंद का
उसी तरह अनुभव होगा
जिस तरह
हमारे महापुरूषों को अनुभव हुआ था।
⚘
श्वेत वर्ण
⚘
सतोगुण/सात्विकता का प्रतीक है,
⚘
यानि के शुभ सत्कर्म के बिना सब कुछ व्यर्थ है
बेकार है।
⚘
कमल का फूल
⚘
कमल का फूल निर्लिप्ता का प्रतीक है,
⚘
जो संदेश देता है कि इस संसार में विद्यमान भौतिक/अभौतिक पदार्थों से तन अलग नहीं हो सकता लेकिन मन इस संसार के आकर्षण से
इस संसार रूपी कीचड से निर्लिप्त रहे।
⚘
वीणा
⚘
वीणा सुर का प्रतीक है,
⚘
शब्द का प्रतीक है। ⚘
जो संदेश देती है कि जैसे वीणा के तार से निकली झंकार सबके मन को प्रसन्न कर देती है,
⚘
उसी तरह से हमारी कर्मेन्द्रिया/ज्ञानेन्द्रिया सबकी प्रसन्नता का कारण बने ।
⚘
मुकुट
⚘
मुकुट इस बात का प्रतीक है कि
जो भी उस दिव्य सुख/ज्ञान की अनुभूति कर लेता है, उसे स्वत: ही वह बेमिसाल
आभा/प्रभा/ज्योति मंडल रूपी मुकुट प्राप्त हो जाता है और
यह विशेष मुकुट
उसे साधारण से असाधारण बना देता है।
⚘
अंत में प्रार्थना की है कि
हमारे मन में जन्म जन्मांतरों से वासनाओं/कामनाओं/
विषय/विकार/पाप रूपी अंधकार फैला हुआ है,
हम उस
कामना/वासना/विषय/विकार/पाप
रूपी अंधकार से रहित हो कर
अंतिम सांस तक सत्य की राह पर
ज्ञान की राह पर चलते हुए
उस सत्य लोक में जिसे
ब्रह्मलोक
अनागामी लोक
सिद्ध शिला,
जनन्त,
स्वर्ग,
पवित्र पर्वत
सच्च खंड
सतलोक
सच्चा दरबार
आदि नामों से संबोधित किया गया है
उस दिव्य लोक में प्रवेश के अधिकारी बन जाएं
⚘
सारांश
⚘
कर्म सिद्धांत में जो समान कर्म सबंधी नियम हैं
यदि कोई कर्म सिद्धांत की अवहेलना करता है तो
उससे बड़ा अहंकारी
उससे बड़ा नादान कोई नहीं क्योंकि
जब भी कोई इंद्रियों के वशीभूत होकर मन का गुलाम बन कर दुष्कर्म करता है तो
उस समय अपने आदर्शपुरूष /गुरु की सीख / ज्ञान को भूल जाता है
जोकि बंधन का कारण बनता है
⚘
जैसे कि किसी को गाडी चलाने की विधी मालूम हो,
⚘
नियम भी मालूम हो, लेकिन वह चलाने का अभ्यास नहीं करें तो पहली बात तो वह ढंग से गाडी नहीं चला सकता है और गिर भी सकता है और यदि नियमों का उल्लंघन करेगा तो जुर्माना भी भरना पड सकता है,
⚘
शारीरिक क्षति भी उठानी पड सकती है।
⚘
अत: सबसे महत्वपूर्ण तो यही है कि हमारी कर्मेन्द्रियां/ज्ञानेन्द्रियां हमारे आदर्शपुरूष की परम सत्य वाणी के अनुसार सत्कर्म करें।
⚘
केवल ईश्वर/गुरू/ग्रंथ या देवी/देवता की प्रतिमा आदि को मानना या नहीं मानना पर्याप्त नहीं है
⚘
सच्चा भक्त
सच्चा शिष्य
तो वही है,
जो परम सत्य ज्ञान के अनुसार
निष्काम भाव से शुभ सत्कर्म करता है।
⚘
है शारदे मां,
है शारदे मां,
⚘
अज्ञानता से
हमें तार दे मां,
⚘
तू स्वर की देवी
यह संगीत तुझ से, ⚘
हर शब्द तेरा
⚘
हर गीत तुझ से।
⚘
हम हैं अकेले,
⚘
हम हैं अधूरे ।
⚘
तेरी शरण हम,
हमें प्यार दे मां।
⚘
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
संतो की भाषा,
आगम की वाणी। ⚘
हम भी तो समझें, ⚘
हम भी तो जानें,
⚘
विद्या का हमको अधिकार दे मां।
⚘
तू श्वेत वर्णी,
⚘
कमल पर विराजे,
⚘
हाथों में वीणा,
⚘
मुकुट सिर पर साजे।
⚘
मन से हमारे
मिटा दे अंधेरा,
⚘
हमको उजाले का परिवार दे मां।
Comments
Post a Comment