स्वाध्याय Self-study, self-education, सत्संग

स्वाध्याय वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद ही ज्ञान का सागर हैं , पहले भी विदेशियों ने इस पर शौध किये हैं और आज भी कर रहे हैं। जो मुक्ति हेतु कर्म से संबंधित सत्य ज्ञान है उसी का उपदेश अधिकांशतः सभी महापुरूषों ने किया है। चाहे भगवान बुद्ध हो , चाहे महावीर स्वामी हो , चाहे ईसामसीह हो , चाहे हजरत मौहम्मद साहब हो , गुरूनानक जी हों , कबीरजी हों या अन्य कोई भी महापुरूश हो सभी ने मुक्ति के लिये कर्म के संबंध में जो उपदेश दिये है , वे सभी वेद में पहले से ही विद्यमान है। किसी भी पावन अंतकरण वाले विरक्त शुद्धात्मा स्वरूप महापुरूश के मुख से मानव व इस जगत के कल्याण के लिये जो भी समान वाणी निकली है , उस वाणी का पालन तो सभी के लिये अनिवार्य है , और उस समान वाणी का पालन करके ही कोई वास्तविक रूप से स्वाध्यायी बन सकता है। स्वाध्याय का अर्थ है मुक्ति/प्रभू साक्षात्कार के लिये ध्यान करना , अपने कर्मों का चिंतन-मनन करना , सद्ग्रंथों का अध्ययन करना , सत्संग सुनना व आचरण में लाने का अभ्यास/प्रयास करना तथा परहित के लिये सेवा कार्य में लगे रहने का अभ्यास/प्रयास करते रहना ही स्वाध...