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Showing posts from August, 2021

ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेगा 

 सर्वे भवंतु सुखिन:  🌺 भाग-1 🌺 ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेगा  🌺 जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें 🌺 ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेग मुट्ठी बांध कर आया, खाली हाथ जायेगा।  तेरे ये महल चौबारे, यहीं रह जायेंगे सारे,  तेरी माया के भंडार, ना जाये साथ में प्‍यारे,  🌺 इस संसार में जो भी जन्‍मता है,  🌺 जो कुछ भी उत्‍पन्‍न होता है  🌺 उसका केवन एक ही कारण है,  🌺 सकाम दुष्‍कर्म / कामना/वासना जनित कर्म ।  🌺 जो भी इस संसार में पंचतत्‍व से निर्मित शरीर /आकृति के साथ उत्‍पन्‍न होता है  🌺 वह पंचतत्‍व से निर्मित शरीर स्‍वयं के कर्मों का ही परिणाम होता है  🌺 स्‍त्री, पुरूष, नपुसंक  🌺 पशु पक्षी  🌺 पेड पौधे  🌺 रंग रूप  🌺 सबल निर्बल  🌺 धनी निर्धन  🌺 सम्‍पन्‍न विपन्‍न  🌺 आदि सब कुछ कमों का ही परिणाम होता है।  🌺 यानि कि इस संसार में अधूरी अतृप्‍त कामना/वासना के कारण ही जन्‍म होता है और  🌺 यदि किसी विरले   का मन ज्ञान के सम्‍पर्क में आने के बाद  🌺 अं...

काहे भरमाता है झूठे सपने में यूं काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं

 सर्वे भवंतु सुखिन-  🌺 भाग - 1 🌺 काहे भरमाता है झूठे सपने में यूं  काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं  🌺 जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।  🌺 परम सत्‍यता तो यही है कि  सभी धर्मों में उपलब्‍ध  परम सत्‍य समान ज्ञान के अनुरूप  हम कर्म नहीं करेंगे तो  हमारे लिये ना केवल वह ज्ञान ही निरर्थक रह जायेगा  अपितू  ज्ञान की अवहेलना करने के कारण  कुछ हासिल होने वाला भी नहीं है। 🌺 काहे भरमाता है झूठे सपनों में यूं  काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं  🌺 यह मनुष्‍य का जन्‍म  बहुत पुण्‍य कर्मों के आधार पर मिलता है और  पवित्रता की  राह पर चलते हुए ही  उस अंतिम मंजिल  उस अंतिम लक्ष्‍य  उस परम लक्ष्‍य  दिव्‍य सुख/परमानन्‍द का अनुभव किया जा सकता है,  🌺 जैसा कि  भगवान बुद्ध, महावीर स्‍वामी, दयानन्‍दजी, विवेकानन्‍द जी, योगेश्‍वरानन्‍दजी, कबीरजी, गुरूनानकजी, राबिया आदि ने किया था। दिव्‍य सुख/परमानन्‍द की अनुभूति करने के लिये आंतरिक अनुभूति के संदर्भ में ईसामसीह ने कहा है कि द्व...

काम क्रोध मद लोभ अहम

सर्वे भवंतु सुखिन:  भाग-1 काम क्रोध मद लोभ अहम  कर ले तू सब को वश में जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।  काम क्रोध मद लोभ अहम  कर ले तू सब को वश में यह वेद का संदेश है यह गीता का संदेश है यह दर्शन, उपनिषदों का संदेश है यह बाैद्ध दर्शन का संदेश है यह जैन दर्शन का संदेश है अधिकतर बहुत से ग्रंथों का संदेश है कि  विकारों से आसक्ति ही बंधन है विकारों से अनासक्ति ही मुक्ति है इसीलिये आरती में  विकारों से मुक्‍त होना ही  प्रभु दर्शन/साक्षात्‍कार की कुंजी/चाबी बतायी गयी है इसीलिये आरती में  प्रथम तो प्रश्‍न किया है कि  है जगत के ईश आप अगोचर हैं,  यानि कि आप दिखाई नहीं देते हैं तो किस विधी से आप से मिलें  जिसका उत्‍तर भी  आरती में ही  दिया है कि  विषय विकार मिटाओ  पाप हरो देवा वेद, गीता, दर्शन,  भगवान बुद्ध,  महावीर स्‍वामी आदि  सभी का कहना है कि  जो इन्द्रियों पर विजय पाता है,  वही इन्‍द्रजीत है  वहीं जितेन्द्रिय है,  वही वीर है,  वही मनजीत है,  वही महापुरूष है वही सत्‍पु...

सांचा नाम तेरा

सर्वे भवंतु सुखिन:  🌺  भाग-1  🌺 साँचा नाम तेरा  🌺 जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।  🌺 एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति  🌺 सत्य एक ही है,  जिसे ज्ञानीजन विभिन्न नामों से व्‍यक्‍त करते हैं।  🌺 इसके दो अर्थ है  🌺 1.    वह अदृश्‍य शक्ति अथवा  अदृश्‍य तत्‍व एक है,  🌺 हम उसे किसी भी नाम से याद करें  🌺 2.   उस अदृश्‍य शक्ति के द्वारा  प्रदत्‍त ज्ञान भी एक ही है,  चाहे हम उसे किसी भी  भाषा के माध्‍यम से प्रकट करें।  🌺 सत्‍य ज्ञान एक होने के कारण ही  अधिकतर सभी महापुरूषों ने  एक स्‍वर में निम्‍न सात्विक गुणों को स्‍वीकारोक्ति प्रदान की है  🌺 १. अहिंसा  (तन मन वाणी से किसी को दुख नहीं पहुंचाना) 🌺 २. सत्‍य  (तन, मन से सत्‍य आचरण व सत्‍यवादिता) 🌺 ३. अस्‍तेय  (तन मन से चोरी का अभाव) 🌺 ४. ब्रह्मचर्य  (प्रथम अवस्‍था अपने जीवन साथी के अतिरिक्‍त अन्‍य स्‍त्री/पुरष से  अनासक्ति/निष्‍काम प्रेम) 🌺 (द्वितीय और अंतिम अवसथा -  ५० वर्ष अथवा सेवानिवृत्ति...