सांचा नाम तेरा
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-1
🌺
साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति
🌺
सत्य एक ही है,
जिसे ज्ञानीजन विभिन्न नामों से व्यक्त करते हैं।
🌺
इसके दो अर्थ है
🌺
1. वह अदृश्य शक्ति अथवा
अदृश्य तत्व एक है,
🌺
हम उसे किसी भी नाम से याद करें
🌺
2. उस अदृश्य शक्ति के द्वारा
प्रदत्त ज्ञान भी एक ही है,
चाहे हम उसे किसी भी
भाषा के माध्यम से प्रकट करें।
🌺
सत्य ज्ञान एक होने के कारण ही
अधिकतर सभी महापुरूषों ने
एक स्वर में निम्न सात्विक गुणों को
स्वीकारोक्ति प्रदान की है
🌺
१. अहिंसा
(तन मन वाणी से किसी को दुख नहीं पहुंचाना)
🌺
२. सत्य
(तन, मन से सत्य आचरण व सत्यवादिता)
🌺
३. अस्तेय
(तन मन से चोरी का अभाव)
🌺
४. ब्रह्मचर्य
(प्रथम अवस्था अपने जीवन साथी के
अतिरिक्त अन्य स्त्री/पुरष से
अनासक्ति/निष्काम प्रेम)
🌺
(द्वितीय और अंतिम अवसथा -
५० वर्ष अथवा सेवानिवृत्ति के पश्चात.
सकल दृश्यमान शक्ल/पदार्थों से अनासक्ति -
लेकिन सभी के प्रति करूणा का भाव/निष्काम प्रेम)
🌺
५. अपरिग्रह -
व्यर्थ विचारों का त्याग, दान की भावना आदि
🌺
६. शौच
(तन, मन वाणी की शुद्धि)
🌺
७- संतोष -
अपने से निम्न स्तर वालों को देखकर संतोष करना
🌺
८. तप -
जब तक संतान स्वालम्बी नहीं हो जाये
तब तक परिवारजनों माता-पिता,
भाई-बहिन, संतान, रिश्तेदार,
साधुजनों आदि के प्रति अपने
दायित्व का निर्वहन करना
🌺
९- स्वाध्याय -
मन, वाणी, शरीर से किये गये
स्वयं के कर्मों का निरीक्षण करना
और स्वयं का सुधार करना
🌺
१०. ईश्वर प्राणिधान -
निष्काम सत्कर्मों को परमात्मा को
अर्पित करना अथवा
गुरू-दक्षिणा की तरह
परमात्मा को समर्पित करना ।
सत्कर्म रूपी फूलों को परमात्मा
अथवा
जिसे भी हम मानते हें
उसे अर्पित करना
🌺
चाहे हम आस्तिक हों या नास्तिक
चार्वाक दर्शन को छोडकर
शेष सभी सात्विक गुणों को मानते हैं
और जिसके तन मन वाणी में
सात्विक गुण समाहित हो जाते हैं,
उसे हर शब्द में अपने आराध्य का नाम ही सुनाई देता है।
🌺
जैसे कि
ॐ - हर मंत्र मे आता है,
हर शुभ काम इसके उच्चारण के बिना सम्पूर्ण नहीं होता,
🌺
बौद्ध, जैन सनातन, वैदिक आदि धर्मों में
किसी ना किसी रूप में ॐ विद्यमान है।
श्रीकृष्ण, श्रीराम, शिवजी, ब्रह्माजी आदि तथा सभी देवी देवता
ॐ -से किसी ना किसी रूप में समब्द्ध थे।
🌺
जैसे कि कृष्ण, श्याम, सांवरे तीनों का ही
शाब्दिक अर्थ काले रंग से हैं
लेकिन जिसका मन सात्विकता में
परिवर्तित हो जाता है
उसे कृष्ण शब्द सुनते ही अहसास
होता है कि जो कण-कण में व्याप्त है,
जिसके आकर्षण के कारण ही
यह समस्त संसार गतिमान है।
कन्हैया - यानि कि
जो हर एक कण में व्याप्त है
हर कण में विद्यमान है
🌺
श्याम -
जो सारे संसार में समाया हुआ है,
जैसे
आकाश से कोई अछूता नहीं,
जल से कोई अछूता नहीं,
पृथ्वी से कोई अछूता नहीं
अग्नि से कोई अछूता नहीं
वायु से कोई अछूता नहीं
इसी तरह जो सर्वत्र समाहित है।
हर तत्व में समाया हुआ है
🌺
सांवरा -
जो समस्त संसार को
संवारने वाला है,
सम्भालने वाला है।
🌺
श्रीराम - जो कण कण में रम रहे हैं
🌺
शिव-
यानि कि जगत का कल्याण कर्ता,
जगत का कल्याण करने वाला -
इसीलिये शिव शब्द बहुत से
वेद मंत्रों में विद्यमान है।
🌺
ब्रह्मा -
इसका शाब्दिक अर्थ है
ब्रह्मांड का निर्माता
🌺
हम चाहे किसी को भी मानते हों,
लेकिन आज सभी अदृश्य हैं,
दिखाई नहीं देते हैं।
तो जो अदृश्य तत्व है,
वही हम सबका परमात्मा है,
चाहे हम उसे किसी भी नाम से पुकारें ।
इसीलिये कहा है
एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति
सत्य एक ही है,
जिसे ज्ञानीजन विभिन्न नामों से व्यक्त करते हैं।
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लगातार -----2-------
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-2
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साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश इसके अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
हम किसी को भी मानते हों
🌺
अंतर में ध्वनि तो
ॐ की ही गुंजायमान हाेती है,
वह ध्वनि एक ही
उसका उच्चारण भले ही कोई
ॐकार के रूप में अनुभव करे अथवा
ॐ के रूप में अनुभव करे अथवा
रंरकार के रूप में अनुभव करे अथवा
सोहं के रूप में अनुभव करें,
इन सभी में ॐ ही समाहित है।
🌺
जैसे कि रेलगाडी की आवाज को
कोई छुक-छुक, कोई फुक-फुक,
कोई छक-छक तो कोई फक-फक
आदि के रूप में वाणी के माध्यम से
प्रकट करता है, लेकिन वास्तव में
गाडी से ध्वनि एक ही निकलती है,
चाहे कोई उसे किसी भी शब्द से व्यक्त करे
🌺
तो वह अदृश्य तत्व भी एक ही है,
चाहे हम उसे किसी भी नाम से पुकारें।
इसीलिये कहा है
एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति
🌺
तो इस भजन की शुरूआत होती है
🌺
ॐ,
साँचा नाम तेरा हो,
तू श्याम मेरा,
साँचा नाम तेरा,
🌺
ॐ,
हे परमात्मा,
है जगत को संवारने वाले,
है जगत में सर्वत्र समाये हुए श्याम
है कण-कण में विद्यमान
आप ही हमारे आराध्य हैं
आप ही अविनाशी हैं
आप ही परम सत्य हैं
आप ही पूजनीय हैं
आप ही वंदनीय हैं
आप ही दाता हैं
आप ही ब्रह्मा हैं, सम्पूर्ण ब्रह्मांड के पदार्थ व मनुष्यों के रचियता है
🌺
आप ही विष्णु - प्रत्येक अणु में व्याप्त हैं, सबके पालनकर्ता हैं
🌺
आप ही महेश - सबसे बड़े ईश हैं
🌺
आप ही रूद्र हैं - मृत्यु के माध्यम से संसारीजनों को रूलाने वाले हैं।
🌺
आप ही सत्य हैं
आप ही सत्य हैं
आप ही सत्य हैं
🌺
आपके अतिरिक्त सब कुछ स्वपनवत है,
🌺
और यह स्वपन प्रारम्भ होता है,
जन्म के साथ और
समाप्त होता है मृत्यु के साथ
🌺
इसीलिये कहा है
सगरा जगत है झूठा साथी
🌺
यानि कि रिश्तों की परविर्ततनशीलता
व यानियों की परिवर्ततनशीलता को
🌺
ध्यान में रखते हुए ही कहा है कि
🌺
यह समस्त जगत और इसमें विद्यमान
पदार्थों/शक्लों से हमारा रिश्ता
केवल इस जन्म तक ही स्वपन की भांति सत्य प्रतीत होता है,
🌺
दूसरे जन्म के साथ ही
पुन: दूसरा स्वपन चालू हो जाता है।
यानि कि जो आज पिता/दादा/नाना/मां/दादी/नानी आदि है
कल वह अनुभव शील होने के बाद पुन:
अनुभवहीन के रूप में जन्म लेता है
🌺
यानि कि एक ज्ञानहीन बच्चे के रूप में जन्म लेता है।
🌺
रिश्ते-नाते सभी परिवर्ततनशील है,
🌺
स्त्री का जन्म पुरूष के रूप में अथवा
पुरूष का जन्म स्त्री के रूप में भी हो सकता है अथवा
पशुवत कर्म करने के कारण
पशु-पक्षी, जलचर,
नभचर,
स्थावर
🌺
किसी भी योनि में हो सकता है।
🌺
स्वपन में और मनुष्य के जीवन में
अंतर इतना ही है कि
मनुष्य चाहे तो ज्ञान के माध्यम से
इस स्वपन से जग सकता है और
जब भी कोई ज्ञान के माध्यम से जगता है
तो उसे यह अहसास होता है कि
इस संसार में जो कुछ है,
सब कुछ नश्वर है,
सब कुछ प्रतिपल, प्रतिक्षण
परिवर्ततित हो रहा है।
🌺
लगातार ------3-------
सर्वे भवंतु सुखिन:
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भाग-3
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साँचा नाम तेरा
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जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
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सत्य केवल अदृश्य तत्व है
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प्रथम - आत्मा-जिसके कारण
यह शरीर गतिमान है और
🌺
दूसरा परमसत्य
परमात्मा जिसके कारण
यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड गतिमान है।
🌺
आत्मा और परमात्मा दोनों ही
अवनिाशी हैं कभी विनिष्ट नहीं होते ।
🌺
जैसे कि आत्मा के शरीर से निकलने पर
शरीर निस्तेज हो जाता है,
ठंडा हो जाता है, तो उसी तरह
🌺
जैसे कि दीपक के टूटने पर
उसकी बाती कुछ देर बाद बुझ जाती है,
तो उसी प्रकार आत्मा के शरीर से
पृथक होने पर शरीर की अग्नि बुझ जाती है।
🌺
उसी प्रकार प्रलय भी
दीपक के टूटने का ही प्रतीक है,
जैसे कि दीपक टूट जाता है,
जिसके कारण मिट्टी का दीपक
विखंडित होता हे
लेकिन मिट्टी का अस्तित्व समाप्त नहीं होता,
🌺
तो उसी तरह पांचों तत्व
जल,
वायु,
अग्नि,
पृथ्वी,
आकाश का
मिश्रण विखंडित हो जाता है, लेकिन
पांचों ही तत्वों का अस्तित्व
बरकरार रहता है।
🌺
परमात्मा और आत्मा दोनों ही ऐसी ज्योति हैं,
जो कि कभी नहीं बुझती,
सदैव प्रज्जवलित रहते हैं।
🌺
आत्मा और परमात्मा के बिना यह प्रकृति निरर्थक है,
इसका कोई उपयोग नहीं,
🌺
जैसे कि प्रजा ही नहीं तो फिर
राजा होने का कोई औचित्य नहीं ।
🌺
आत्मा परमात्मा में सबसे बडा अंतर
तो यही है कि
परमात्मा बंधन में नहीं आता,
परमात्मा किसी भी प्रकार के बंधन में
नहीं रहता और
आत्मा अविद्या/अज्ञान के कारण
शरीर रूपी बंधन में रहती है।
🌺
तो इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दीपक के टूटने पर बाती बुझ जाती है,
हम यह प्रयास करें कि
यह जो शरीर रूपी साधन हमें मिला है,
वह अंतिम दीपक हो और
वह टूटे तो ऐसा टूटे कि
फिर बिना शरीर के ही
बिना बंधन के ही
जलता ही रहे,
जलता ही रहे,
जलता ही रहे
🌺
यानि कि मृत्यु भी आये तो
आंनद मग्न रहते हुए उसका वरण करें
और
मृत्योमां अमृतंगमय का मंत्र सार्थक हो जाये।
यह मंत्र तभी सार्थक हो पाता है,
🌺
जब कोई ज्ञान पर आचरण करते हुए
असत्य से सत्य में समाहित हो जाता है,
अंधेरे से प्रकाश में समाहित हो जाता है।
🌺
यानि कि यह शरीर रूपी दिया तो
आज नहीं तो कल टूटना ही है
लेकिन अब यह टूटे तो ऐसा टूटे कि
बिना शरीर के ही यह आत्मदीप
जलता ही रहे।
🌺
मुक्ति में पंचतत्व से निर्मित शरीर
पंचतत्व में विलीन हो जाता है और
संकल्पमय शरीर रह जाता है,
जो कि समस्त दुखों से मुक्त रहता है।
🌺
टूटे दीपक बुझ जाये बाती -
इस बात को ध्यान में रखते हुए
हम जन्म-मरण से छुटकारा पाकर
अखंड ज्योति की तरह
मृत्यु से अमृतत्व की ओर अग्रसर होवे।
🌺
लगातार -------4------
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-4
🌺
साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
हर रंग में तू
संग में है
चाहे साँझ हो चाहे सवेरा
साँचा नाम तेरा,
🌺
सब रंग उस अदृश्य तत्व के कारण ही विद्यमान हैं
🌺
सब कुछ उस अदृश्य तत्व के कारण ही गतिमान है
🌺
सांझ हो या सवेरा
दिन हो या रात
प्रकाश हो या अंधेरा
श्वेत हो या श्याम
कृष्ण हो या शुक्ल
अमावस्या हो या पूर्णिमा
उत्तरायण हो या दक्षिणायन
जन्म हो या मृत्यु
🌺
सब कुछ उस अदृश्य तत्व की
अद़भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय
रचना का ही परिणाम है। अत:
🌺
वही पूजनीय है,
वही वंदनीय है
वही अराधना के योग्य है
उसके बिना कुछ भी संभव नहीं
ना जन्म ना मृत्यु
ना बधन ना मुक्ति
🌺
हां इतना अवश्य है कि
उस अदृश्य तत्व ने हमें
स्वतंत्र रखा है कि हम चाहें तो
बंधनों को और प्रगाढ करें और
चाहें तो बंधनों को तोड देंं
🌺
एक कैदी को तो ताकत के बल
पर बंदी बनाया जाता है,
ताकत के बल पर
जंजीर, बेडियां, हथकडी आदि से बांधा जाता है लेकिन मनुष्य तो ऐसा प्राणी है जो स्वयं विषय-विकार से
ग्रसित होकर जन्म जन्मांतरों से बार-बार स्वयं ही स्वयं को जकडता रहता है
🌺
जैसे कि रेशम का कीडा खुद अपने ही
बनाये रेश्मी जाल में घुट घुट कर मर जाता है।
🌺
तो उसी तरह विषय-विकार
पाप मय संस्कारों के बंधन के कारण
मनुष्य स्वयं ही स्वयं को
बंधन में बांधता रहता है।
🌺
जो कमलवत अनासक्त जीवन जीता है,
वह मुक्त हो जाता है और
आसक्तिवान बंधन में ही रहता है।
🌺
लगातार -------5------
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-5
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साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
मैं तुझ में खोई रे
दूजा न कोई रे
जागी या सोई रे
तू एक अपना जीवन सपना
सगरा जगत है झूठा साथी
टूटे दीपक बुझ जाये बाती
जब
सोते -जागते,
उठते-बैठते,
चलते-फिरते,
खाते-पीते
हर पल
हर क्षण
उस अद़श्य तत्व को याद रखते हुए
सत्कर्म किये जाते हैं और
इस तरह का अभ्यास करते-करते
जब कोई भी उस अदृश्य तत्व में
मन काे एकाग्र कर लेता है और
मन में उस अराध्य/अदृश्य तत्व के अतिरिक्त
कोई चिेतन नहीं चलता, यानि
चित्तवृत्तियों का निरोध हो जाता है
तब सच्चे अर्थों में ध्यान सार्थक हो पाता है।
🌺
इसीलिये इसमें कहा है कि
है परमात्मा हमारे जीवन का स्वपन
यह नश्वर दृश्यमान जगत और
इसमें विद्यमान शक्ल/पदार्थ नहीं
अपितु केवल एकमात्र आप ही हमारा स्वपन हैं।
🌺
यानि कि आपसे संयुक्त होना,
आपके परमानन्द की अनुभूति करना ही हमारा सपना है।
🌺
यदि किसी में मन को एकाग्र करना है
तो वह केवल एकमात्र आप ही है,
आपके अतिरिक्त कोई भी नहीं।
🌺
मैं ने बिगाड़ा हर काम अपना
तूने सँवारा हर काम मेरा
साँचा नाम तेरा,
🌺
ना जाने कितने जन्म-जन्मांतरों से
हम आपसे संयुक्त होने के स्वपन को
तोडते हुए आ रहे
हर जन्म में विषय-विकार से
ग्रसित होने के कारण
आपकी अनुभूति से,
आपके साक्षात्कार से वंचित हैं।
🌺
हर जन्म में आपने सत्य पुरूषों के माध्यम से
इस सत्य से वाकिफ करवाया है,
लेकिन हर जन्म में हमने उस
स्वर्णिम अवसर को गंवाया है।
🌺
आपने हर जन्म में हमें निश्रेयस
की यात्रा पूर्ण करने के लिये
किसी ना किसी माध्यम से प्रेरित किया है,
लेकिन हमने हर जन्म में
जिन संस्कारों के कारण
बंधन प्रगाढ होता है,
उन्हीं संस्कारों को प्रगाढ किया है।
आपसे यही प्रार्थना है कि
इस जन्म में हम सत्य पथ पर चलते हुए
अपने इस अनमोल जीवन को सार्थक करें।
🌺
लगातार -------6-----
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-6
🌺
साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
दुःख सुख की धारा
तू है किनारा
🌺
यदि जन्म है तो
सुख और दुख दोनों ही धारायें
हमारे मन व तन को सुख व दुख
प्रदान करती रहती है, और
🌺
इस सुख और दुख की धारा का
कारण हमारे कर्म ही होते हैं,
🌺
चाहे इस जन्म के हों अथवा
पूर्व जन्म के हों।
🌺
इन दोनों सुख दुख रूपी धाराओं से
छूटने का एक ही मार्ग है,
🌺
उस परमानन्द की अनुभूति करनाा।
🌺
वह परमानन्द ही किनारा है,
🌺
वह परमानन्द की अनुभूति ही
जीवन मुक्त अवस्था है।
🌺
है परमात्मा आपसे प्रार्थना है कि
हम सत्य पथ पर चलते हुए
किनारे तक पहुंच सके और
🌺
इस मनुष्य जन्म को सार्थक कर सकें।
🌺
मनमोहन प्यारा
सब का खेवैया
कृष्ण कंहैया
🌺
है परमात्मा
सगरा जगत है झूठा साथी
टूटे दीपक बुझ जाये बाती
🌺
आप ही हैं, जो सबके
मनों को मोहित करने वाले हैं
🌺
आप ही हैंं जो सबको
किसी ना किसी माध्यम से
ज्ञान रूपी नैया प्रदान करते हैं,
🌺
जिस नैया में बैठकर कर्म रूपी पतवार
सही दिशा में चलाते हुए ही
किनारे पर पहुंचा जा सकता है।
🌺
है सबके मन को आकर्षित करने वाले,
है कण-कण में व्याप्त परमात्मा
हमारा मन सदैव आप के आकर्षण में
रत रहे आसक्त रहे और
इस नश्वर जगत से अनासक्त रहे
🌺
आपसे यही प्रार्थना है,
यही कामना है।
🌺
लगतार --------7-------
सर्वे भवंतु सुखिन:
🌺
भाग-7
🌺
साँचा नाम तेरा
🌺
जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।
🌺
तोड़ के ये मन मंदिर बना दूँ
हो मन के मंदिर में धाम तेरा
🌺
मन का तोडकर मंदिर बनाना
🌺
यही सबसे विकट कार्य है और
🌺
जब मन मंदिर बन जाता है
🌺
तब ही उस अदृश्य शक्ति की
अनुभूति सम्भव हो पाती है।
🌺
मन में विकारों का भंडार,
विषयों की तृप्ति के संस्कार हैं,
🌺
जिसके कारण मन
दूषित है,
अपवित्र है,
पापी है,
नापाक है,
अशुद्ध है,
🌺
जब यह अशुद्ध मन टूटता है
तब
अहिंसा,
सत्य,
अस्तेय,
ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह,
शौच,
संतोष,
तप,
स्वाध्याय,
ईश्वर प्राणिधान के गुणों से मन
उसी तरह से शुद्ध हो जाता है,
🌺
जिस तरह स्वर्ण अग्नि में तपकर
मैल से रहित होकर कुंदन बन जाता है।
🌺
तामसिकता को मन से निर्वासित करके ही
मन सात्विकता से सराबोर हो पाता है,
🌺
और मन ऐसा शुद्ध मंदिर बन जाता है
🌺
जहां
ना आसक्ति होती है,
ना कामना,
ना वासना,
ना काम,
ना क्रोध,
ना लोभ,
ना मोह,
ना राग,
ना द्वैष और
ऐसे मन वालों में ही,
ऐसी शुद्धात्माओं क मन में ही
उस अदृश्य शक्ति का वास होता है,
🌺
ऐसे मन वालों को ही वह परमानन्द रूपी
किनारा मिल पाता है
🌺
ऐसे मन वालों का ही यह जन्म
सफल हो पाता है।
🌺
ऐसे मन वालों की ही यात्रा पूर्ण हो पाती है
और अंतिम परम लक्ष्य
🌺
निश्रेयस/मोक्ष/निर्वाण आदि की प्राप्ति हो पाती है।
🌺
सबका भला हो।
ॐ
साँचा नाम तेरा हो,
साँचा नाम तेरा
तू श्याम मेरा,
साँचा नाम तेरा,
तू श्याम मेरा
🌺
सगरा जगत है झूठा साथी
टूटे दीपक बुझ जाये बाती
हर रंग में तू
संग में है
चाहे साँझ हो चाहे सवेरा
साँचा नाम तेरा,
तू श्याम मेरा,
साँचा नाम तेरा
🌺
मैं तुझ में खोई रे
दूजा न कोई रे
जागी या सोई रे
🌺
तू एक अपना जीवन सपना
सगरा जगत है झूठा साथी
टूटे दीपक बुझ जाये बाती
🌺
मैं ने बिगाड़ा हर काम अपना
तूने सँवारा हर काम मेरा
साँचा नाम तेरा,
तू श्याम मेरा,
साँचा नाम तेरा
🌺
दुःख सुख की धारा
तू है किनारा
मनमोहन प्यारा
सब का खेवैया
कृष्ण कंहैया
🌺
सगरा जगत है झूठा साथी
टूटे दीपक बुझ जाये बाती टी
तोड़ के ये मन मंदिर बना दूँ
हो मन के मंदिर में धाम तेरा
साँचा नाम तेरा,
तू श्याम मेरा,
साँचा नाम तेरा
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