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बसंत पंचमी पर विशेष

 सर्वे भवंतु सुखिनः  ⚘ बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं ⚘ जो गुरु उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें ⚘  लेख का उद्देश्य  किसी का दिल दुखाना नहीं है अपितु सत्‍कर्मों के लिये प्रेरित करना है।  ⚘ अधिकतर शिष्य  अपने मत की वाहवाही तो करते हैं लेकिन  ⚘ एश्‍वर्य का आधार ⚘ मुक्ति  का आधार सत्‍कर्मों को जीवन में स्थान ही नहीं दे पाते हैं ⚘ जैसे कि बसंत के बाद बहार का मौसम आता है,  ⚘ वैसे ही सभी के जीवन में बहार आ जाये,  ⚘ समस्त जगत के प्राणियों के समस्‍त दुखों का अंत हो जाये और  सदाबहार की तरह सभी का जीवन सुखमय हो जाये। ⚘ सनातन धर्म के अनुसार शारदा देवी को सरस्‍वती देवी के नाम से जाना जाता है, जो कि  सुरों की देवी है,  ज्ञान की देवी है, शारदा शब्‍द के अन्य  पर्यायवाची एवं अन्य अर्थ हैं -  ⚘ हंसमुख,  ⚘ सक्षम,  ⚘ स्वैच्छिक, ⚘ रचनात्मक, ⚘ उदार  ⚘ हंसमुख -  ⚘ यानि कि जिस पर दुख-रंज  का कोई असर नहीं पड़ता   ⚘ जब भी कोई मुस्कुराता है  उस मुस्कुराहट में उसकी  ही झलक दिखाई पड़ती  है ⚘ ...

मकर संक्रांति का अध्यात्मिक संदेश अध्यात्मिक भावार्थ

 सर्वे भवंतु सुखिन: ⚘ मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें  ⚘ जो गुरु उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें ⚘ यह संसार द्वंद्वात्‍मक है  अधिकतर सब कुछ दो पहलुओं में बंटा हुआ है  ⚘ मकर संक्रांति भी हमें यही स्‍मरण कराती है  रात्रि के पश्‍चात दिन  कृष्‍ण पक्ष के पश्‍चात शुक्ल पक्ष सर्दी के बाद गर्मी   दक्षिणायण के बाद उत्‍तरायण  ⚘ जिस तरह से जन्‍म-मरण का चक्र चलता है उसी तरह यह परिवर्तनीय चक्र सतत चलता ही रहता है  ⚘ उत्‍तरायण - सूर्य  दक्षिण दिक्षा से पुन: उत्‍तर की ओर गमन करता हुआ दिखाई देता है इसे ही उत्‍तरायण कहा जाता है  ⚘ दक्षिणायण - सूर्य उत्‍तर दिशा से पुन: दक्षिण की ओर गमन करता हुआ दिखाई देता है तो इसे दक्षिणायण कहते हैं।  ⚘ यानि कि प्रतिदिन सूर्य के उदय की दिशा में परिवर्तन होता दिखाई देता है  ⚘ 6 महिने सूर्य उत्‍तर से दक्षिण की ओर गति करता दिखाई देता है  तथा  6 महिने सूर्य दक्षिण से उत्‍तर की ओर गति करता दिखाई देता है  ⚘  ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश उत्‍तारायण है। ⚘ तो ...

भावार्थ - या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'

  सर्वे भवंतु सुखिनः या देवी सर्वभूतेषु  शक्ति-रूपेण संस्थिता।  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥'  जिसका गुण देने का हो उसे ही देव अथवा देवी कहते हैं  इस दृश्‍यमान संसार में विद्यमान उस अदृश्‍य शक्ति की अद्भूत रचना के कारण ही हमें  जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्‍वी के माध्‍यम से  जीवन प्राप्‍त होता है यदि वायु नहीं तो जीवन नहीं यदि अग्नि/सूर्य नहीं तो जीवन नहीं  यदि आकाश खुला स्‍थान नहीं तो जीवन नहीं  यदि जल नहीं तो जीवन नहीं  यदि आश्रय स्‍थल नहीं तो जीवन नहीं - यानि कि चाहे जलचर हो अथवा नभचर हो अथवा थलचर हो सबको विश्राम करने के लिये आश्रय स्‍थल की आवश्‍यकता पडती ही है। नभचर आकाश में अथवा वायु में विचरण करने के उपरांत एक समय ऐसा आता है कि उन्‍हें पृथ्‍वी अथवा पृथ्‍वी पर स्थित पेड पौधे आदि का आश्रय विश्राम हेतु लेना ही पडता है। तो वह अदृश्‍य शक्ति चाहे हम उसे किसी भी नाम से संबोधित करें वह जग को दान देने वाली देवी समस्त भूतों में यानि के पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश में '' शक्ति'' के रूप में विद्यमान है ऐसी दात्री शक्ति जिसके कारण समस...

ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेगा 

 सर्वे भवंतु सुखिन:  🌺 भाग-1 🌺 ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेगा  🌺 जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें 🌺 ना लाया साथ कुछ बंदे, ना तेरे साथ जायेग मुट्ठी बांध कर आया, खाली हाथ जायेगा।  तेरे ये महल चौबारे, यहीं रह जायेंगे सारे,  तेरी माया के भंडार, ना जाये साथ में प्‍यारे,  🌺 इस संसार में जो भी जन्‍मता है,  🌺 जो कुछ भी उत्‍पन्‍न होता है  🌺 उसका केवन एक ही कारण है,  🌺 सकाम दुष्‍कर्म / कामना/वासना जनित कर्म ।  🌺 जो भी इस संसार में पंचतत्‍व से निर्मित शरीर /आकृति के साथ उत्‍पन्‍न होता है  🌺 वह पंचतत्‍व से निर्मित शरीर स्‍वयं के कर्मों का ही परिणाम होता है  🌺 स्‍त्री, पुरूष, नपुसंक  🌺 पशु पक्षी  🌺 पेड पौधे  🌺 रंग रूप  🌺 सबल निर्बल  🌺 धनी निर्धन  🌺 सम्‍पन्‍न विपन्‍न  🌺 आदि सब कुछ कमों का ही परिणाम होता है।  🌺 यानि कि इस संसार में अधूरी अतृप्‍त कामना/वासना के कारण ही जन्‍म होता है और  🌺 यदि किसी विरले   का मन ज्ञान के सम्‍पर्क में आने के बाद  🌺 अं...

काहे भरमाता है झूठे सपने में यूं काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं

 सर्वे भवंतु सुखिन-  🌺 भाग - 1 🌺 काहे भरमाता है झूठे सपने में यूं  काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं  🌺 जो गुरू उपदेश के अनुरूप हो ग्रहण करें।  🌺 परम सत्‍यता तो यही है कि  सभी धर्मों में उपलब्‍ध  परम सत्‍य समान ज्ञान के अनुरूप  हम कर्म नहीं करेंगे तो  हमारे लिये ना केवल वह ज्ञान ही निरर्थक रह जायेगा  अपितू  ज्ञान की अवहेलना करने के कारण  कुछ हासिल होने वाला भी नहीं है। 🌺 काहे भरमाता है झूठे सपनों में यूं  काहे मन लगाता है झूठे सपनों में यूं  🌺 यह मनुष्‍य का जन्‍म  बहुत पुण्‍य कर्मों के आधार पर मिलता है और  पवित्रता की  राह पर चलते हुए ही  उस अंतिम मंजिल  उस अंतिम लक्ष्‍य  उस परम लक्ष्‍य  दिव्‍य सुख/परमानन्‍द का अनुभव किया जा सकता है,  🌺 जैसा कि  भगवान बुद्ध, महावीर स्‍वामी, दयानन्‍दजी, विवेकानन्‍द जी, योगेश्‍वरानन्‍दजी, कबीरजी, गुरूनानकजी, राबिया आदि ने किया था। दिव्‍य सुख/परमानन्‍द की अनुभूति करने के लिये आंतरिक अनुभूति के संदर्भ में ईसामसीह ने कहा है कि द्व...