ॐ की महिमा
सर्वे भवंतु सुखिनः
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ॐ की महिमा
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ॐ सर्वश्रेष्ठ नाम है
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लेकिन चाहे हम उसे किसी भी नाम से याद करें
एक उसी को याद करते हैं
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जिसके लिए कहा है
एकम सत
विप्रा बहुधा वदन्ति,
अर्थात ,
सत्य एक है:
जिसे ज्ञानीजन
विभिन्न नामों से बुलाते हैं
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ओम की महिमा
जिसका वर्णन
वेद
गीता
दर्शन
उपनिषद
पुराण आदि सब ग्रंथों में मिलता है 🌹
ओम के उच्चारण बिना
हवन पूरा नहीं होता और
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ओम के उच्चारण बिना
विवाह संपन्न नहीं होता
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इसीलिए ओम को सभी मंत्रों से पहले लगाकर बोला जाता है
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इसीलिए देवों के नाम से पूर्व भी
ॐ का उच्चारण किया जाता है
इसीलिये
ॐ नमः शिवाय
ॐ नम: भगवते श्री वासुदेवाय नमः कहा जाता है
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ब्रह्मा जी के हाथ में जो वेद हैं
यानि कि ज्ञान है वह भी
ॐ से भरा हुआ है
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गीता के आठवें अध्याय में भी
ॐ की महिमा बताई गई है
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सर्वद्वाराणि संयम्य मनो
हृदि निरुध्य च ।
मूर्ध्याधायात्मनः
प्राणमास्थितो
योगधारणाम् ॥
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं
स याति परमां गतिम् ॥
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सब इन्द्रियों के द्वारों को रोककर
तथा मन को हृदय देश में स्थिर करके ,
फिर उस जीते हुए मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके ,
परमात्म सम्बन्धी योग धारणा में स्थित होकर
जो पुरुष ' ॐ ' इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिन्तन करता हुआ
शरीर को त्याग कर जाता है ,
वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है ॥ १२-१३ ॥
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यानि कि ॐ ही एक ऐसा है
जिसकी महिमा,
जिसका गुणगाण
हर एक देवी-देवता या
जिन्हें हम भगवान कहते हैं
उन्होंने भी
उस ॐ का उच्चारण
किसी न किसी रूप में किया है
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बौद्ध धर्म की
महायान शाखा में भी
ॐ का उच्चारण
’’ओम मणि पद्मे हूम’’ मंत्र के
रूप में किया जाता है
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श्री गुरुनानक जी ने भी
कहा है कि
एक ओंकार
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जैन मंत्र में भी ॐ का
उच्चारण होता है
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ॐ शब्द 3 अक्षरों से
मिलकर बना है
अ, उ और म यानि कि
अकार,
उकार,
मकार
जैसे कि 3 रंगों से ही
सारे रंग बन जाते हैं
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उसी तरह इन 3 के बिना
शब्द नहीं बन सकता
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हर शब्द, हर नाम में
यह तीनों ही समाहित है।
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इसीलिए ॐ से ही
संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति मानी जाती है।
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ब्रह्माजी , विष्णुजी और शिवजी की एक कहानी प्रचलित है
कोई इसे सत्य मानता है
कोई असत्य
केवल समझाने के लिए है
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ब्रह्मा , विष्णु और शिव अपनी - अपनी असाधारण शक्तियों के विषय में बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे ।
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अचानक एक छोटा बालक वहाँ आया और ब्रह्माजी से कहने लगा ,
" आप क्या रचते हैं ?
ब्रह्मा ने उत्तर दिया - सब कुछ ,
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उस बालक ने विष्णुजी से पूछा
उत्तर मिला - प्रत्येक वस्तु का पालन
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शिवजी से भी पूछा ।
उत्तर मिला प्रत्येक वस्तु का नाश
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वह छोटा बालक अपने हाथ में दाँत कुरेदनी के आकार का घास का एक छोटा तिनका पकड़े हुए था ।
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ब्रह्मा के सामने उसे रखते हुए वह बोला '
क्या आप ऐसा ही एक तिनका बना सकते हैं ? "
अत्यधिक प्रयास के बाद ब्रह्मा
यह जान कर आश्चर्यचकित हुए कि वे नहीं बना सकते ।
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तब बालक ने विष्णुजी को उस तिनके की रक्षा करने के लिए कहा ।
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बालक ने तिनके पर दृष्टि जमाई और वह धीरे - धीरे लुप्त होने लगा ।
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विष्णुजी तिनके की रक्षा करने में असफल रहे ।
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बालक ने पुनः उस तिनके को प्रकट किया और शिवजी से उसे नष्ट करने को कहा ।
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शिवजी ने उसका विनाश करने का प्रयास किया ,
परन्तु वह तिनका वैसे - का - वैसा ही रहा ।
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बालक ने ब्रह्माजी से पूछा,
“ क्या आप ने मुझे बनाया ? "
ब्रह्माजी ने बार - बार विचार किया , परन्तु उन्हें कुछ याद नहीं आया कि कभी उस अद्भुत बालक को उन्होंने बनाया हो ।
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अचानक वह बालक अदृश्य हो गया । तीनों देवता अपने भ्रम से जागे और उन्हें याद आया कि
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उनकी शक्ति के पीछे एक और अधिक महान् शक्ति है
वह शक्ति ओम है
वह ओम आज्ञा चक्र में स्थित है
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सबका भला हो।
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