नाम दीक्षा नाम दान - दवा पथ्य परहेज
नाम दीक्षा
जैसे कि यदि किसी रोगी के रोग को सही करना हो तो तीन नियमों का पालन करने पर रोगी शीघ्र ठीक हो सकता है वह तीन है
दवा
पथ्य
परहेज
जैसे कि किसी को
फ्रिज के पानी के कारण
खांसी जुकाम का रोग लगा हो
डॉक्टर ने उसे फ्रिज का पानी
पीने को मना किया हो तथा
गुनगुना पानी पीने के लिए कहा हो
लेकिन यदि मरीज
डॉक्टर की बात नहीं मानेगा
फ्रिज का पानी नहीं छोड़ेगा
यानी परहेज नहीं करेगा
गुनगुना पानी नहीं पिएगा
यानी पथ्य का पालन नहीं करेगा
दवा नहीं लेगा
तो ऐसा मरीज सही नहीं हो सकता
आध्यात्मिक जगत में
गुरु जो दीक्षा ध्यान विधि नाम जप
बताते हैं यह दवा की तरह हैं
पथ्य है शुभ सत्कर्म
यानी कि
अहिंसा
सत्य
अस्तेय
ब्रह्मचर्य
अपरिग्रह
शौच
संतोष
तप
स्वाध्याय
ईश्वर प्राणिधान
परहेज है दुष्कर्म से दूर रहना
यानी कि
विषय (रूप, रस, गंध, शब्द, स्पर्श - इंद्रियों के विषय)
विकार - (काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर)
पाप से दूर रहना
इसीलिए आरती में आता है विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा
यदि हमारे मन को हमने श्वेत
शुद्ध
उज्जवल
निर्मल
निर्विकार
निर्विषयी
निष्पाप
नहीं बनाया तो सब व्यर्थ
सब बेकार
🌺नाम दीक्षा 🌺
इनके अभाव में एक सुंदर मनमोहक स्वपन से अधिक कुछ भी नहीं
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यह संसार द्वंद्वात्मक है
अधिकतर हर चीज के दो पहलू हैं
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एक शुक्ल, एक कृष्ण
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एक उत्तरायण एक दक्षिणायन
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एक सत (सात्विकता)
दूसरा तम तामसिकता
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एक धर्म एक अधर्म
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एक दिन एक रात
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एक पूर्णिमा एक अमावस्या
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एक ज्ञान एक अज्ञान
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एक सुर एक असुर
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एक देव एक दानव
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एक प्रकाश एक अंधकार
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एक बंधन एक मुक्ति
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पथ्य - उज्जवल पक्ष
यानी मन की सात्विकता परमानंद की ओर ले जाती है।
मुक्ति की ओर ले जाती है
यानी की अधोगति से उधर्वगमन
यानी कि जो मन रूपी धारा संसार की और बह रही थी
वह धारा संसार से विमुख होकर परमात्मा की ओर बहने लगती है यानी की धारा का उल्टा राधा
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परहेज - अंधकारमय पक्ष
यानी जिसका मन विषय विकार व पाप रूपी मैले/अपवित्र रंग से रंगा होता है
वह पूर्णत:
उज्जवल
श्वेत
पवित्र
बेदाग
परमात्मा की अनुभूति से वंचित ही रहता है
यानी ऐसे मन वालों के लिए सांसारिक पदार्थ ही सर्वस्व होते हैं
परमात्मा /परमानंद गौण होता है।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि सब अपने मन को उज्जवल परिशुद्ध बनाकर अपने मन को
पवित्रता से मालामाल करें
ज्ञान से मालामाल करें
परमानंद से सराबोर करें
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