ज्ञान योग
सर्वे भवंतु सुखिनः
ज्ञान योग
यानि कि किस तरह के कर्म करें,
जिससे उस अदृश्य शक्ति की अनुभूति कर मुक्त हो सकें।
ज्ञान योग आंखों की तरह है,
जो पथ-प्रदर्शन करती हैं।
ज्ञान योग कहता है कि
ज्ञान योग यह स्पष्ट करता है कि क्या अविनाशी है
क्या नित्य है
क्या अनित्य
क्या नश्वर है और
क्या अनश्वर/अविनाशी है
आत्मा परमात्मा के अतिरिक्त
सब नश्वर है अथवा
सब परिवर्तनशील है
अलग-अलग मत
इसको अलग-अलग तरह से मानते हैं
लेकिन आत्मा परमात्मा को सभी
नित्य अजर अमर अविनाशी मानते हैं
ज्ञान योग कहता है कि ज्ञान के अनुसार निष्काम सत्कर्म करें,
अब बात वही आ जाती है कि
ज्ञान योग कहता है कि
यदि उस अदृश्य शक्ति की अनुभूति करनी है
तो सत्य में समाहित होना ही होगा,
सात्विक बनना ही होगा,
निष्काम सत्कर्म करने ही होंगे।
ज्ञान मार्ग भी यही कहता है कि
स्वार्थ के लिये नहीं परमार्थ के लिये जीना है।
सभी ऐषणाओं/कामनाओं
चाहे वह संतान से जुड़ी हो,
चाहे संसार से जुडी हो,
चाहे धन-सम्पत्ति आदि से जुड़ी हो
इन सभी
ऐषणाओं/
कामनाओं को मन से विसर्जित करना ही पड़ता हे और
उस अदृश्य शक्ति की ऐषणा/कामना को मन में स्थापित करना होता है।
साक्षी भाव से
दृष्टा भाव से
आत्म भाव से
उस परमात्मा को ध्यान में रखते हुए ही सत्कर्म करने पड़ते हैं।
अहिंसा,
सत्य,
अस्तेय
ब्रह्मचर्य,
अपरिग्रह,
शौच,
संतोष,
तप,
स्वाध्याय,
ईश्वर प्राणिधान का पालन करना ही पड़ता है,
ध्यान करना ही पड़ता है।
यानि मन को किसी भी केन्द्र बिन्दू
चाहे वह श्वांस हो, कोई स्पंदन हो अथवा कोई आंतरिक चक्र उस पर एकाग्र करना पडता है
समाधि तक की यात्रा पूर्ण करनी पड़ती है।
यानि के भक्ति योग में भक्त के मन में अपने आराध्य के अतिरिक्त कुछ नहीं रहता,
तो ज्ञान योग भी यही कहता है कि
यदि उस तक पहुंचना है तो
केवल और केवल निष्काम शुभ सत्कर्म,
केवल और केवल उसका ही ध्यान,
उसका ही चिंतन,
उसका ही विचार
उससे मिलन की चाह के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं,
कुछ भी नहीं,
कुछ भी नहीं।
ज्ञान योग का सारांश यही है कि
यह हमें मार्ग बताता है कि कैसे
उस अदृश्य शक्ति तक पहुंचा जा सकता है।
जैसे कि हमें रोटी चाहिये तो उसके लिये
सर्वप्रथम गेहूं, फिर उसका आटा, चकला-बैलन, ईंधन, पानी, परात, तवा आदि की आवश्यकता होती है।
जब इन सभी का संयोग/समन्वय होता है तब रोटी प्राप्त होती है,
तो ज्ञान योग भी यही कहता है कि
जब तक तन-मन से निष्काम शुभ सत्कर्म नहीं करेंगे,
विषय-विकार से विरत नहीं होंगे,
पापों से विरत नहीं होंगे,
ध्यान नहीं करेंगे,
मन को एकाग्र नहीं करेंगे,
तब तक उस अदृश्य तत्व की अनूभूति भी नहीं कर सकेंगे।
इसमें भी भक्ति मार्ग की तरह सबसे बड़ी समानता यही है कि
उस अदृश्य शक्ति की चाह के अतिरिक्त कोई चाह नहीं।
ज्ञान एक लंगड़े की तरह है,
जो स्वयं नहीं चल सकता,
लेकिन जिसके पास आंखें हैं और
वह अंधों को यह बता सकता है कि
किस तरह के कर्म आपको जला देंगे,
अर्थात् आपके दुख का कारण बनेंगे।
किस तरह के कर्म आपके सुख का कारण बनेंगे।
और किस तरह के कर्म आपको आवागमन के चक्र में फंसा देंगे और
किस तरह के कर्म आपको आवागमन के चक्र से दूर कर देंगे, मुक्त कर देंगे।
सबका भला हो
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