ज्ञान अनमोल धन है

ज्ञान तो वह अनमोल धन है जिसके कारण सांसारिक राजनीतिक आर्थिक लक्ष्य प्राप्त किया जाता है 


फिर आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त किया जाता  है 


जिसके कारण आज विचारों का आदान प्रदान हो पाता है 


ज्ञान वह लंगड़ा है जिसे हम नेत्रहीन कंधे पर बिठाकर इस अग्निमय  संसार से पार होते हैं


जैसे कार्य होने के बाद साधन की कोई आवश्यकता नहीं होती तो ज्ञान भी साधन है अभ्युदय और निश्रेयस की प्राप्ति का 


उसी तरह मंजिल प्राप्त होने पर  ज्ञान का कार्य पूर्ण हो जाता है

जो ज्ञान रूपी साधन को नहीं मानता उससे बड़ा नादान कोई नहीं


मन के वशीभूत होकर ही

 मन के जाल में फस कर ही 

मनुष्य अज्ञानमय कर्म करता है और 

दुर्गति को प्राप्त होता है 


मन के जाल से निकलकर ही 

मनुष्य ज्ञान के प्रकाश में आकर  ही जो करना चाहिए वह करता है और मन के जाल से निकल जाता है 

अज्ञानी सोचता है कि वह मन को धुन रहा है लेकिन उसे नहीं पता रहता कि

मन अज्ञानी को ही धुनता ही रहता है

अज्ञानी मन के जाल में फंसा रहता है उसे मन बार-बार गड्ढे में गिराता रहता है

ज्ञान के अनुसार मन का आंतरिक और बाहरी ध्यान रखकर ही कोई मन के जाल से बच पाता है

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