आध्यात्मिक ज्ञान और भौतिक ज्ञान

 ज्ञान दो भागों में बटा हुआ है 


एक आध्यात्मिक ज्ञान 

जो अदृश्य से संबंधित है 


दूसरा भौतिक ज्ञान 

जो सांसारिक पदार्थों से जुड़ा होता है 


अब हम कॉमन सेंस कहें या जनरल नॉलेज कहें 

ज्ञान कहे विज्ञान कहे

यह दोनों ही भौतिक पदार्थों के लिए लागू है


एकाग्रता के कारण ही 

ज्ञान विज्ञान में परिवर्तित होता है  

अविष्कारक जब अविष्कार करता है 

तो वह एक ही अविष्कार के लिए

 ना जाने कितनी बार प्रयोग करता है 

तब ज्ञान-विज्ञान बनता है 

यानी ज्ञान की विकसित अवस्था ही विज्ञान है 


लेकिन यह दोनों ही ज्ञान 

भौतिकता से संबंधित है

दृश्यमान पदार्थों के लिए लागू है 

 बुद्धि की दौड़ दृश्य मान पदार्थों पर समाप्त हो जाती है


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दूसरा ज्ञान है जो अदृश्य चेतन तत्व से संबंधित है 

यह ज्ञान बुद्धि से भी आगे की अवस्था है 

जिसमें बुद्धि 

प्रज्ञा में परिवर्तित हो जाती है

 विवेक में परिवर्तित हो जाती है 

ऋतंभरा में  परिवर्तित हो जाती है


इस ज्ञान का संबंध 

अदृश्य के साथ होता है 

यानी अदृश्य तत्व को 

प्रमुखता दी जाती है

दृश्य मान अपेक्षाकृत 

इतना महत्वपूर्ण नहीं होता


यदि हम किसी पहुंचे हुए गुरु के पास 

चल जाए तो  वह ऐसा कार्य नहीं कर सकता 

जो कि एक वैज्ञानिक कर सकता है 


लेकिन अंतर इतना है की 

भौतिक ज्ञान से संलग्न मनुष्य 

रोता हुआ अथवा 

बहुत सी अधूरी कामनाएं लेकर 

दुखी मन से इस संसार से विदा होता है और 


अदृश्य की साधना करने वाला 

ज्ञानी यानी विज्ञान से भी आगे 

प्रज्ञा तक पहुंचने वाला मनुष्य

 हंसते हुए इस संसार से विदा होता है।

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